दिल्ली की राजनीतिक सरगर्मियां धीरे-धीरे तेज हो रही हैं, और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) ने अपनी गतिविधियों से राजनीतिक हलचल बढ़ा दी है। चुनावों से पहले संघ ने राजधानी में अपनी पकड़ मजबूत करने के लिए गली-मोहल्लों में छोटी-छोटी बैठकों का आयोजन शुरू कर दिया है।

क्या है आरएसएस की योजना?
बैठकों का लक्ष्य:
आरएसएस ने दिल्ली में पांच लाख बैठकों के आयोजन का लक्ष्य रखा है। अब तक करीब एक लाख बैठकें पूरी हो चुकी हैं।
स्वयंसेवकों की सूची तैयार:
इन बैठकों में स्थानीय स्वयंसेवकों और संघ से जुड़े परिवारों की सूची बनाई जा रही है। इसका उद्देश्य मतदान के दिन उनकी सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित करना है।
स्थानीय मुद्दों पर चर्चा:
बैठकों में दिल्ली के नागरिकों से जुड़े स्थानीय मुद्दों, जैसे स्वच्छता, बिजली-पानी, और शिक्षा की स्थिति पर चर्चा हो रही है।
राजनीतिक प्रभाव:
आरएसएस की यह रणनीति सीधे तौर पर आम आदमी पार्टी (AAP) और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के लिए चुनौती बन सकती है।
गली-मोहल्लों तक पहुंच:
आरएसएस का यह कदम दिल्ली के वोटरों के बीच सीधा संवाद स्थापित करने की कोशिश है, जिससे चुनावों में भाजपा को फायदा हो सकता है।
संगठन की ताकत:
संघ की यह रणनीति न केवल भाजपा के लिए समर्थन जुटाने में मददगार हो सकती है, बल्कि AAP के वोट बैंक में सेंध लगाने का भी प्रयास है।
केजरीवाल के लिए चुनौती क्यों?
आप की जमीनी पकड़ पर असर:
AAP का गढ़ माने जाने वाले क्षेत्रों में संघ की बढ़ती सक्रियता से पार्टी की जमीनी पकड़ कमजोर हो सकती है।
संघ का संगठित नेटवर्क:
आरएसएस का संगठित नेटवर्क भाजपा के लिए मजबूत वोटिंग मशीनरी तैयार कर सकता है।
संघ का उद्देश्य:
आरएसएस इन बैठकों के माध्यम से केवल राजनीतिक उद्देश्य नहीं बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक मुद्दों पर जागरूकता फैलाने का दावा करता है। हालांकि, राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह भाजपा के चुनावी एजेंडे को मजबूत करने का एक हिस्सा है।
निष्कर्ष:
आरएसएस की यह रणनीति दिल्ली के राजनीतिक परिदृश्य में बड़े बदलाव का संकेत दे रही है। जहां एक ओर यह भाजपा को ताकत देने का काम करेगी, वहीं दूसरी ओर यह अरविंद केजरीवाल और AAP के लिए नई चुनौती बन सकती है। अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस खेला का नतीजा क्या होगा।