असर की नमाज़ के बाद दरगाह के मुख्य द्वार निज़ाम गेट से चादर का जुलूस गद्दीनशीन सैयद अब्दुल ग़नी चिश्ती साहब की सदारत में शुरू हुआ। सभी खुद्दामों ने चादर अपने सरों पर रख कर अपनी अकिदतों का इज़हार किया जिसमें मुख्यतः फिरोज़द्दीन संजरी साहब, सलीम चिश्ती साहब, इमरान चिश्ती, आदिल चिश्ती, नज़र-ए-मोईन चिश्ती, रहमान चिश्ती, जमील चिश्ती, ताज अहमद, साबिर चिश्ती इत्यादि लोग शामिल हुए एवं ज़ायरीनो ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया। जुलूस गाजे बाजे एवं क़व्वाली के साथ सहनचिराग, औलिया मस्जिद, शरकी गेट होता हुआ पाईंती दरवाज़े पर पहुँचा। वहाँ साहिबज़ादि सैयदा बीबी हाफ़िज़ा जमाल(र अ) के मज़ार पर मखमली चादर एवं अकिदत के फूल पेश कर दुनिया में अमन एवं शांति के लिए दुआ की गयी।

रात को आस्ताना शरीफ़ मामूल होने के बाद गद्दीनशीन सैयद फख़र काज़मी चिश्ती साहब की सदारत में महफ़िल-ए-समा हुई। शाही क़व्वाल असरार एवं अज़ीम ने अपने साथियों के साथ फ़ारसी, उर्दू, एवं ब्रज भाषा में कलाम गाकर कर अपनी अपनी अकिदतों का इज़हार किया, अंत में फ़ातेहा ख़्वानी हुई जिसके बाद निज़ाम गेट पर से मौरूसी अमले ने शादियाने बजाए।
आज(21 फ़रवरी 2022) सुबह 11 बजे महफ़िल ए समाँ का आग़ाज़ होगा, जिसमें फ़ारसी उर्दू ब्रज भाषा में कलाम गाकर, अंत में आज रंग है री माँ बीबी हाफ़िज़ जमाल घर रंग है री गाकर क़व्वाल अपनी अकिदत का इज़हार करेंगे। दोपहर 1 बजे कुल की रस्म होगी जिसमें दस्तरख़्वान पढ़ा जाएगा एवं फ़ातेहा ख़्वानि होने के बाद बढ़े पीर की पहाढ़ से ग़दरशाह तोप चलाएँगे दरगाह के मौरूसी अमले शादियाने बजाएँगे इसी के साथ उर्स का समापन होगा।
सैयद राग़िब चिश्ती(अधिवक्ता) ने बताया कि बीबी हाफ़िज़ा ख़्वाजा साहब की चहिती बेटी थीं। वे जब पैदा हुईं तो ख़्वाजा साहब ने अपना लभ उन्हें चखा दिया था इसलिए उन्होंने बचपन में ही क़ुरान पढ़ कर सुना दिया था। तभी से उनको बीबी हाफ़िज़ा के नाम से जाना जाने लगा। उनकी दुआओं से बे औलाद को औलाद मिलती है। उन्होंने 850 वर्ष पूर्व हैपी वैली में चिल्ला किया था, हैपी वैली में नूर चश्मे में आज भी उनका चिल्ला मौजूद है। उन्होंने औरतों में दीन की बहुत ख़िदमत अंजाम दीं, वे घरों में जा कर औरतों को दिनी तालीम दिया करती थीं।